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Saturday 12 November 2016

ताउम्र पैसों के इर्द गिर्द घूमती रही कमबख़्त ज़िंदगी...

ताउम्र पैसों के इर्द गिर्द

घूमती रही कमबख़्त ज़िंदगी

रिश्तों की परछाईयाँ

अंधेरों में ढूँढती रही ज़िंदगी

पैसा हाथ से फ़िसला

रिश्ते लकीरों से गिरे

फ़िर भी गुरेज़ से ऊँचा

मस्तक किये भागती रही ज़िंदगी

बचपन में खेल खिलौनों से

जी भर मन बहलाया

युवावस्था से मरणासन्न तक

पैसों से ख़ूब खेलती रही ज़िंदगी

पलकें ख़्वाहिशों का बोझ ढोये

सफ़र तय करती रही मीलों का

बहरूपिये पैसे संग

आँख मिचौली करती रही ज़िंदगी

ताउम्र पैसों के इर्द गिर्द

घूमती रही कमबख़्त ज़िंदगी

रिश्तों की परछाईयाँ

अंधेरों में ढूँढती रही ज़िंदगी !!!

#ManishSharma