Search This Blog

Monday 15 August 2016

आज़ादी की एक भोर ऐसी भी होगी...

शरीर तो आज़ाद हो गये थे 1947 में

सोच आज भी इंतज़ार में हैं रिहाई के

विकार के सारे बादल छंट जायेंगे इक दिन

हर एक कोने में धूप छम से बिखर जायेगी

सारे भेद मिटा उस दिन हम इंसान बन जायेंगे

उस दिन सभी की थाली में रोटी होगी

किसी की भी आँखें नम ना होगी

जमीं पर प्रेम और वात्सल्य की बरखा होगी

आज़ादी की एक भोर ऐसी भी होगी

जाति, धर्म और मज़हब की आड़ में

ना किसी की कुटिया जलेगी

ना किसी की चिता सुलगेगी

ना कोई बेबस होके सूत भरेगा

ना ही कोई जीते जी रोज़ मरेगा

बहन बेटियाँ और बहुओं की

अस्मत तार तार ना होगी

सारा देश उनके घर सा होगा

और वो ख़ुद को महफूज़ समझेगी

आज़ादी की एक भोर ऐसी भी होगी

उस दिन जश्न ए आज़ादी सही मायनों में होगी !!!

#ManishSharma

Happy Independence Day