हिन्दी दिवस के पखवाड़े का आज दूसरा दिन हैं जिसमें संस्कार भारती, बाड़मेर की ओर से आयोजित स्वामी विवेकानन्द सार्द्ध शति पर काव्य संगोष्ठी का आयोजन आज गांधी चौक विधालय, बाड़मेर के प्रागंण में किया गया, जिसमें शहर के कई जाने माने कवियों और साहित्यकारों ने शिरकत की। स्वामी विवेकानन्द जी के व्यक्तित्व पर मेरे द्वारा लिखी कविता जिसका शीर्षक “स्वामी नरेन्द्र विवेकानन्द” को आज प्रस्तुत करने का अनुभव मेरे लिए अविस्मरणीय रहा। स्वामी जी को शब्दों में बयान कर पाना बेहद मुश्किल है, लेकिन मेरे लिए प्रसन्नता की बात ये रही कि प्रसिद्ध कवियों और साहित्यकारों की शोहबत में रहकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और मेरे द्वारा कही कविता की कवियों और साहित्यकारों ने सराहना की। इस सराहना ने मेरे भीतर एक नई ऊर्जा का संचार सा कर दिया हैं और वरिष्ठ कवियों और साहित्यकारों द्वारा मिले इस प्यार के कारण मुझमें अच्छा कार्य करने का जज्बा भी जाग उठा। गुजरे दिन से मेरी शिथिलता आज कुछ कम थी, लेकिन मैं अपने आप को पूरी तरह से सहज महसूस नहीं कर पा रहा था लेकिन सहज होने का बार बार प्रयास ज़रूर कर रहा था। खैर इसी के साथ एक अच्छी काव्य संगोष्ठी का समापन हुआ पुरस्कार वितरण के साथ।
स्वामी नरेन्द्र विवेकानन्द
जिनके मुख पर सदा ही रहता
वीर पुरूष सा तेज अलौकिक
जिनकी काया में बल रहता
इन्द्रदेव के वज्र के माफि़क
शांत चित्त और निर्मल वो थे
वाणी से रस माधुर्य था टपका
भाषण देते थे वो ऐसे
जैसे कोई शेर हो गरजा
मन से थे वे दृढ़ संकल्पी
आत्मा से भाव विभोर
नैनों में थी चमक निराली
पुरूषार्थ से थे सराबोर
पूजा पाठ और ध्यान योग में
भक्ति उनकी पूरी थी
काम क्रोध और मोह माया से
मीलों उनकी दूरी थी
कर्मयोग का भेद सिखाकर
जग को दिया नया आधार
हिन्द प्रांत की गाथा गाकर
पश्चिम को दिये नये विचार
हिन्दी क्या है हिन्दू क्या है
अर्थ बताया ऐसे साधक
हिन्दी क्या है हिन्दू क्या है
थे भारतीय संस्कृति के प्रचारक
जग जाने हैं स्वामी उनको
माँ के थे वो नरेन्द्रनाथ
छवि थी उनकी बड़ी ही अद्भुत
सादा जीवन उच्च विचार
उनके पदचिन्हों पर चलना
चाहे भारत माँ का लाल
नयी दिशा दी है "मन" को
हो साकार भारत माँ का ख्वाब
आत्मसात कर लिया हैं जिनको
नाम जपे हर कंठ
आदर्श हैं और वो ही रहेंगें
स्वामी विवेकानन्द !!