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Sunday 12 October 2014

जन्नत सिसक रहा है !!!

बाढ़ग्रस्त हैं गलियां सारी

विकट परिस्थितियाँ हुई हैं भारी

चीत्कार रहे हैं सारे कूचे

नम निगाहें इधर उधर

बस अपनों को ही ढूंढें

ग़म भारी है और दर्द हावी

हर ओर फैली भयावह त्रासदी

डल तबाह हो चुकी है

शिकरे सभी हुए तहस नहस

कोई तो देखो, कोई तो थामों

नम निगाहें मदद मांगे

उदास चेहरे भीतर झांके

कश्मीर (जन्नत) सिसक रहा है

अपने ज़ख्मों पर फफक रहा है

कश्मीर (जन्नत) सिसक रहा है

अपने ज़ख्मों पर फफक रहा है !!!

Poet : Manish Sharma