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Sunday 24 November 2013

उठो और देश बुनो...



इन दिनों ’’राजनीति’’ का माहौल कॅाफी गर्म है हालाँ कि मैं हमेशा से ही इस मुद्दे पर अपनी राय रखने से बचता आया हूँ लेकिन मैं अपने आप को आखिर कब तक धोखा देते हुए सच कहने से बचता रहूँ, मेरे चाहने या ना चाहने से व्यवस्था में परिवर्तन हो ये सम्भव नहीं लेकिन व्यवस्था में परिवर्तन करने का प्रयास नहीं करने का दंश में जीवन पर्यतं नहीं सहना चाहता इसी लिए मन में चल रही कुछ संवेदनाओं को व्यक्त कर रहा हूँ।         
           ’’राजनीति’’ जाने कितनी सदियों से चली आ रही है ये राजनीति जिसका तात्पर्य होता है राज करने के लिए बनाए जाने वाली नीतियाँ लेकिन राज किस पर शायद जनता पर हालां कि इसका जवाब दिया जाना बेहद मुश्किल है, क्यों कि प्राचीन काल से ही चली आ रही इन नीतियों को देख कभी भी ऐसा नहीं लगा कि ये नीतियाँ जनकल्याणकारी रही हो, इन नीतियों से जनता का लाभ कम और राज करने वालों का लाभ शायद ज्यादा होता चला आया है, राजनीतिक पार्टीयों को उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अधिकाधिक मतों से विजय प्राप्त कर सत्ता में बने रहना ही रह गया है। लेकिन आम नागरिक को जीवन यापन करने के लिए क्या मूलभूत आवश्यकताऐं होती हैं इससे शायद किसी भी राजनीतिक पार्टी को सरोकार नहीं।
       ये राजनीतिक पार्टीयाँ अगर थोड़ा बहुत कुछ कर भी देती हैं तो उसे आने वाले चुनावों में विकास का मुद्दा बनाकर के चुनाव लड़ती है। कई प्रकार के लुभावने वादे और जनकल्याणकारी योजनाओं के लाए जाने का आश्वासन देती है, और जनता इन वादों के पूरे होने का आश्वासन लेते हुए अपने मत का प्रयोग करती है, ये अलग बात है कि कौन सी पार्टी जीतने बाद में गिरगिट की भांति रंग बदलने वाली हैं। चुनाव के दौरान किसी भी पार्टी के किसी भी नेता से मिलना बहुत ही आसान होता है लेकिन सत्ता में आ जाने के बाद की स्थिति बिल्कुल इससे विपरीत होती है। निर्वाचन आयोग द्वारा प्रचार किया जाता है कि सही प्रत्याशी का चुनाव करते हुए अपने मत का प्रयोग अवश्य करें जिससे कि सही और ईमानदार उम्मीद्वार सत्ता में आ सके। लेकिन उस सही और ईमानदार प्रत्याशी को कहाँ ढूँढा जाये ये एक आम नागरिक के जहन् में चल रहे सवालों में से एक बहुत बड़ा सवाल होता हैं लेकिन इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास नहीं होता।
           राजनीतिक पार्टीयों द्वारा टिकट का निर्धारण किस प्रकार से किया जाता हैं ये समीकरण भी बड़े उलझे हुए होते हैं, राजनीतिक पार्टीयाँ सिर्फ उन प्रत्याशियों को ही टिकट देती हैं जिनकी जीत निश्चित हो इसका निर्धारण या जातिगत आधार पर किया जाता हैं या फिर ऐसे उम्मीद्वारों को टिकिट दे दिया जाता है जो किसी ना किसी प्रकार की अपराधिक गतिविधियाँ जैसे बलात्कार, हत्या, भ्रष्टाचार, हिंसक प्रकरणों में ही क्यों ना लिप्त रहे हो। हमारे देश के राजनेता विदेशों में उत्पादन और विकास किये जाने वाली कई प्रकार की नई तकनीकों जैसे कृषि, इंजिनियरिगं, इत्यादि को देखने के सिलसिले में सरकारी खर्चे पर विदेश दौरे पर भी जाया करते है, वहाँ जाकर के उन तकनीकों को लाकर के हमारे देश में लागू करते है, लेकिन यही राजनेता हमारे देश में विकसित देशों की भांति कानून व्यवस्था, चुनाव प्रक्रिया लागू करवाने से क्यों कतराते हैं क्यों नहीं जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को चुनाव करवाया जाता हैं, क्यों आर्थिक रूप से जनता पर चुनाव के बाद बेहाल कर दिया जाता हैं। अक्सर लोगों को चर्चा करते देखा जाता हैं कि हमारा देश अभी भी विकसित देशों की अपेक्षा बहुत पीछे है, मान भी लिया जाये कुछ चीज़ों में हम पीछे हैं लेकिन आगे लाने के प्रयास भी तो सही प्रकार से नहीं हुए हैं। क्यों आए दिन होती रहती है जातिगत हिंसा, उग्र तनाव क्या लाभ हैं इन सबसे, नुकसान की तो शायद सारी सीमाऐं लाघं देती होगीं ये जातिगत हिंसा। इन स्थितियों में क्या होता हैं गरीब और गरीब हुऐ जा रहा है और अमीर और भी ज्यादा अमीर।
           लोग देश में अमन चाहते है, शातिं चाहते है, खुशहाली चाहते हैं अगर ऐसा नहीं हैं तो क्या कभी किसी ने सुना है कि किसी ने कहा हो कि हमें युद्ध बेहद पसन्द है, शायद नहीं, स्कूलों में बच्चों को ज्ञान दिया जाता हैं, प्रेम सौहर्द और एका करके रहने की बातें सिखाई जाती है लेकिन लेकिन क्या ये सारी बातें किताबी होती हैं क्यों वास्तविकता तो इससे परे हैं, एक राजनीतिक पार्टी दूसरी राजनीतिक पार्टी को नीचा दिखाने का एक भी अवसर नही छोड़ती, अपनी प्रसंसा, दूसरे की कमियाँ, क्या यही रह गया है राजनीति में। अन्य देशों को मैत्रीय होने का संदेश दिया जाता हैं लेकिन हम लोग कभी अपने देश में मैत्रीय सम्बध स्थापित कर पाए। सर्वश्रेष्ठ बनने की प्रतिस्पर्धा में कहीं हम हमारे देश को फिर से गुलाम बनाने की कवायद तो नहीं कर रहे।
           सोचो ग़र सारी राजनीतिक पार्टीयाँ मन से एक होकर प्रेम और सोहर्द से रहकर इस देश को सर्वश्रेष्ठ बनाने का प्रयास करे तो क्या हमारे देश में कोई भी ऐसा मुद्दा बचेगा जो हमारे देश को खोखला करें।

जब तुम

तुम ना होओगे

जब मैं

मैं ना हाऊँगां

तब तुम

मुझमें
होओगे

और मैं

तुझमें हाऊँगां

टूटेंगी फिर

सब दीवारें

जो मुझको

तुझसे बांट रही

मिट जाऐंगें

सब फ़ासले

जो तेरे मेरे

दरमयाँ रही

आओ मिलकर

हम देश बुने

आओ मिलकर

हम साथ चलें।