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Tuesday 12 July 2022

ना हथाई, ना बंतळ।

ना हथाई, ना बंतळ।


ये ज़रूरी नहीं कि हर वो आदमी जो चाय की थड़ी या पान की दुकान पर मिले, वो चाय पीता हो, पान सुपारी खाता हो या सिगरेट फूँकता हो।


मैंने कभी किसी चाय की थड़ी या पान की दुकान पर बैठकर चाय पीते हुए या पान सुपारी खाते हुए गपशप (ठेठ मारवाड़ी में दो शब्द हैं हथाई या बंतळ) नहीं की।


इन दिनों ठाकुर जी जिस स्कूल में जा रहे है वो शहर से थोड़ी दूर है। स्कूल, स्कूल बस में जाना पड़ता है। ठाकुर जी को स्कूल बस में बैठाने का ठिकाना, एक दवाई की दुकान के बाहर है। लेकिन स्कूल से वापसी एक चाय की थड़ी के बाहर होती है। जहाँ थोड़ी धूप, थोड़ी छाँव मुझ पर पड़ती रहती है।


मैं ठाकुर जी की स्कूल बस आने से ठीक दस मिनट पहले उस चाय की थड़ी के बाहर खड़ा होकर ठाकुर जी के स्कूल से लौट आने का इंतज़ार करता हूँ। तब तक वहाँ से गुज़रने वाला मेरी जान पहचान का हर एक शक़्स मुझसे पूछता है, यहाँ कैसे खड़े हो ? पूछने वालों की तादाद इसलिए भी ज़्यादा होती है कि मैं जिस सरकारी अस्पताल में नौकरी करता हूँ वहाँ से ज़्यादा दूरी नहीं है चाय की थड़ी की। लोगों का पूछना लाज़मी भी है क्योंकि इससे पहले मुझे कभी किसी आदमी ने चाय की थड़ी या पान की दुकान पर नहीं देखा।


मेरी ज़िंदगी का अब बस एक ही मक़सद है आप अच्छे और क़ाबिल इंसान बनो ठाकुर जी। ख़ूब पढ़ो, बड़े आदमी बनो। मैं आपके लिए ख़ुद को फ़ना करने के लिए तैयार हूँ।