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Sunday 4 August 2019

दोस्त, मिले तो फिर बिछड़े ना।

या रब्बा, या तो दोस्त मिले ना
गर, मिले तो फिर बिछड़े ना

आज के दिन तुम बहुत याद आते हो। तुम्हें भुला पाना नामुमकिन है "रवि"। तुम्हारे जैसा सरल इंसान मैंने तुम्हारे बाद आज तक कभी किसी में नहीं पाया। दोस्ती क्या होती है ये मुझे तुमने सिखलाया।

ग्यारह साल पहले तुम्हारे एक रोड़ एक्सीडेंट में दुनिया से चले जाने के बाद मुझे पेशेवर दोस्त तो बहुत मिले, लेकिन तुम्हारे जैसा सच्चा, निःस्वार्थ दोस्त कभी कहीं नहीं मिला। तुम मेरे पहले और अंतिम मित्र थे।

बचपन से शुरू हुआ सफ़र ज़वानी की दहलीज़ पर पहुंचते ही ख़त्म कर तुम मुझे हमेशा के लिए तन्हा छोड़कर चले गए। तुम्हारे चले जाने का मलाल मुझे ताउम्र रहेगा मित्र।

मोहल्ले की एक ही गली में रहते थे हम दोनों। साथ खेलते थे, साथ स्कूल जाते थे। रवि सैन पढ़ाई में होशियार था और मैं कमज़ोर। मुझे नहीं आने वाले सवालों के ज़वाब भी रवि के पास हुआ करते थे। यहाँ तक कि एक तकनीकी कोर्स भी हमने साथ किया। हम दोनों साइकिल से रोज़ तीन से चार किलोमीटर सवेरे इंस्टिट्यूट जाते और शाम को वापिस आते। शाम को आने के बाद वो कुछ देर मेरे घर रुकता और टीवी पर एक तक फिल्में देखता। उसे फिल्मों का बहुत शौक था। फ़िल्म अगर सन्नी देओल की हो तो देर रात तक मेरे ही घर रुकता। यहाँ तक कि स्टील के चार खानो वाले एक ही टिफ़िन में हमारा खाना डाला जाता था, खाना भी साथ ही खाते थे। मेरे कोई सगा भाई-बहन नहीं हैं। इकलौती संतान हूँ मैं अपने माता पिता की। लेकिन रवि मेरे लिए दोस्त नहीं सगे भाई से भी बढ़कर था।

#FriendshipDay

~ मनीष शर्मा