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Monday 10 September 2018

“मैं”

हमारे ठाकुर जी की एक लघु कथा

“मैं”

मैं, ठाकुर जी और मेरी मम्मी जी हर शाम स्टेडियम जाते हैं। मैं जॉगिंग के लिए, ठाकुर जी झूले खाने, घूमने के लिए और मेरी मम्मी जी ठाकुर जी का ख़्याल रखने के लिए।

कल मेरी जॉगिंग पूरी हो जाने के बाद मैं ठाकुर जी के पास आया। ठाकुर जी मिट्टी में बैठे खेल रहे थे। ठाकुर जी जहाँ बैठे थे वहां से दस क़दम की दूरी पर दो नंग धड़ंग बच्चे जिनकी उम्र ठाकुर जी की उम्र से तक़रीबन पाँच साल ज़्यादा रही होगी दोनों कुश्ती कर रहे थे और मिट्टी में खेलते खेलते भौंहें ऊपर करके कुश्ती कर रहे उन बच्चों को ठाकुर जी बार बार देख रहे थे।

‘वैसे ठाकुर जी को कुश्ती का बड़ा शौक़ है। हर रोज़ मेरे और ठाकुर जी के बीच पलँग पर कुश्ती होती हैं।’ इसी कुश्ती के दरम्यां ठाकुर जी की मम्मी जी को बस एक ही फ़िक्र कि ठाकुर जी और आप पलंग तोड़ दोगे।

मैं उन कुश्ती कर रहे बच्चों के पास गया और एक बच्चे से बोला क्या आप ठाकुर जी से कुश्ती करेंगें। बच्चा बोला हाँ जी।

मग़र मैंने बच्चे के कान में धीरे से फुसफुसाते हुए कहा कि आपको ठाकुर जी से हारना है। बच्चा सहजता से बोला ‘जी’ मैं हारने को तैयार हूँ।

इतने में ठाकुर जी से मेरी मम्मी जी का एक सवाल - ठाकुर जी आपको क्या पसंद है ? पढ़ाई या खेलना ? ठाकुर जी का जवाब दोनों ही नहीं। मुझे तो बच्चों से लड़ना पसंद हैं।

कुश्ती का पहला चरण शुरू हुआ ठाकुर जी ने ज़ोर आज़माया और उस बच्चे को हरा दिया। क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में भी ऐसा ही हुआ। ठाकुर जी ने उस बच्चे को हर बार हरा दिया। ठाकुर जी बहुत ख़ुश थे और ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे। मैं ठाकुर जी से भी ज़्यादा ख़ुश था। ऐसी ख़ुशी मुझे कभी मेरे जीतने पर भी नहीं हुई। मग़र मुझे ठाकुर जी की उस वास्तविक जीत का इन्तज़ार हमेशा रहेगा जो उनके पुरुषार्थ के दम पर होगी। ऐसा एक दिन ज़रूर आयेगा, मुझे पूरा यक़ीन हैं।

हम लोग आज भी स्टेडियम गये। स्टेडियम पहुंचते ही मैं जॉगिंग करने लगा और ठाकुर जी खेलने लग गये।

कुछ देर बाद मैं ठाकुर जी के पास आया तो ठाकुर जी की आँखों में उन बच्चों का इंतज़ार साफ़ नज़र आ रहा था।

एकाएक ठाकुर जी ने सवाल किया पापाजी आज वो बच्चे नहीं आये ?

मैंने ठाकुर जी से कहा - हाँ आज वो बच्चे नहीं आये। आपने उन्हें कल कुश्ती में बुरी तरह से हरा दिया इसीलिए आज वे डर के मारे नहीं आये। ये सुन ठाकुर जी के चेहरे पर मंद मंद मुस्कुराहट आयी और अपनी भुजा को उठा अपनी ताक़त का प्रदर्शन करने लगे और दाँत भींचते हुए कहने लगे ‘देखा पापा जी में कितना ताक़तवर हूँ।' मुझे और मेरी मम्मी जी को ज़ोरों की हंसी आ रही थी।

सारांश - बड़े तो बड़े छोटे बच्चे भी अहंकार से भरे होते हैं। दूसरे शब्दों में यूँ कहूँ की हर एक शख्स तारीफ़ का मोहताज़ हैं। इंसान की गई सही तारीफ़ उसे शिखर पर भी ले जा सकती है तो झूठी उसे हाशिये पर भी ला सकती हैं। मुझे ठाकुर जी को इसी अहंकार से बचाये रखते हुए सही तारीफ़ का हक़दार बनाये रखने के साथ साथ एक अच्छा इंसान भी बनाये रखने की पूरी कोशिश करनी हैं।

क्योंकि अहंकार इंसान की इंसानियत को ज़िंदा निगल जाती हैं। भगवान ठाकुर जी को हमेशा हर बुरी नज़र से बचाये रखे।

तस्वीर कुश्ती से ठीक पहले की।

~ मनीष शर्मा