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Thursday 24 February 2022

जंग ख़त्म करो रूस, यूक्रेन।

बस, ये दुनिया यहीं ख़त्म हो जाये तो बेहतर। क्या फ़ायदा ऐसी दुनिया में जीने का जहाँ प्रेम का हास हो रहा है और नफ़रत फ़ल फूल रही है। क्यों हम आने वाली नस्लों को बारूद के ढेर पर मरने के लिए छोड़ रहे हैं। आदमी, आदमी का दुश्मन बन रहा है और एक देश दूसरे देश से अधिक शक्तिशाली होने के चक्कर में कमज़ोर देश को अपने पैरों तले कुचल रहा है।


हम सब भीड़ हैं, ऐसी भीड़ जो हमेशा से तमाशा देखती आयी है, दो लोगों की लड़ाई का तमाशा। जिस लड़ाई में कमज़ोर ज़ख्मी होता हैं। इन दोनों लोगों की लड़ाई को छुड़वाने का प्रयास करने पर इनकी लड़ाई बीच में ख़त्म हो जाती है लेकिन जो इस लड़ाई में ताक़तवर है वो हमारा दुश्मन बन जाता है। बस यही तमाशा विश्व के सभी देश इस वक़्त देख रहे हैं, कोई बीच बचाव नहीं करेगा। कोई मानवाधिकार आयोग सामने नहीं आएगा। बस सारे देश दूर से निंदा करेंगे।


मेरी बातों में विरोधाभास भी है, कभी कभी मुझे लगता है 'समरथ को नहिं दोष गुसाईं' कहावत कितनी सार्थक है। मैं हमेशा से देखता आ रहा हूँ कि ताक़तवर लोगों की ग़लत बात को भी लोगों ने सही ठहराया है आगे भी ठहराते रहेंगे। कमज़ोर हमेशा कुचला जाता आया है और कुचला जाता रहेगा।


मैं ये नहीं कह रहा है रूस ग़लत है या यूक्रेन। मैं बस ये कह रहा हूँ कि दुनिया में जीना है तो आदमी को इतना ताक़तवर होना चाहिए कि कोई नज़र उठाने से पहले अंजाम के बारे में सौ बार सोचे।


वैसे हम लोग ख़ामख़ा अपने अहंकार का बोझ लिए घूम रहे हैं। अहंकार तो वीटो वालों को होना चाहिये। हमारे पास सामान क्या है ?


वैसे जंग ख़त्म करो, आपस में प्रेम करो यूक्रेन और रूस। नहीं तो दो देशों या दो लोगों की लड़ाई में कभी कभार कोई तीसरा आग में घी डालने का काम करता है और वो तीसरा मौके की तलाश में है।


~ मनीष शर्मा