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Sunday 21 August 2022

ठाकुर जी के कुछ मासूम सवाल।

दो सप्ताह पहले मैं और ठाकुर जी पलंग पर पसरकर घर पर सिनेमा देख रहे थे। शायद घर पर पसरकर सिनेमा देखने की ही उपज रहे होंगे आधुनिक सिनेमा।


यथासंभव है कि पश्चिमी देशों में थोड़े दिन बाद सिनेमा से कुर्सियाँ गायब हो जाये और पलंग ही दिखाई दे। वैसे भारत की बढ़ती आबादी अधिकतर सिनेमा में पलंग नहीं लगने देगी।


ख़ैर हम जो फ़िल्म देख रहे थे उसका नाम था "भाग मिल्खा भाग"। मिल्खा सिंह का जुनून उन्हें सर्वश्रेष्ठ धावक बना देता है। मैं फ़िल्म देखने के साथ-साथ ठाकुर जी के अवचेतन मन में मिल्खा सिंह के जुनून को भरने की कोशिश कर रहा था। मैं ठाकुर जी को समझा रहा था कि मिल्खा सिंह के पास वे सुविधायें नहीं थीं, जो आज कल के बच्चों के पास है, आपके पास है। आप भी मेहनत करके मिल्खा सिंह जैसे बनो। मिल्खा सिंह जैसे मतलब, जो आपको पसंद हो, वो काम करो। साथ ही ख़्याल रहे कि वो पसंद का काम क़ामयाबी दे, ख़ुशी दे। ऐसे किसी लक्ष्य को हासिल करने के पीछे लग जाओ जिससे ज़िंदगी लुत्फ़ देने लगे।


लेकिन एकाएक एक दृश्य दिखाई देता है जिसमें मिल्खा सिंह क़ामयाबी के शिखर पर पहुँच जाने के बाद एक दौड़ से पहले मदिरा का सेवन करते हुए नज़र आते हैं। 


ठाकुर जी का मासूम सा सवाल, पापा जी आप कहते हो कि शराब बुरी चीज़ है और किसी भी बुरी आदतों के साथ बड़ा आदमी नहीं बना जा सकता तो फिर क़ामयाब होने से पहले इनका लक्ष्य सिर्फ़ मैदान में जीत रहा लेकिन क़ामयाबी हासिल करने के बाद ये शराब क्यों पीने लगे ? मैं अपने ज़वाब को चालाकी से हेरफ़ेर (manipulate) करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन मैं सवालों के ज़वाब को हेराफ़ेरी करने में कुशल नहीं हूँ तो ज़्यादा देर तक ठाकुर जी ने मुझे जवाबों को हेरफ़ेर नहीं करने दिया इसके तुरंत बाद ठाकुर जी को बातों में उलझाने से बेहतर मुझे सही-सही ये बताना सहज लगा कि शराब बहुत बुरी चीज़ है इसके सेवन से आदमी को कोई फ़ायदा नहीं होता, बल्कि नुक़सान होता है। जैसे सेहत का नुक़सान, पैसों का नुक़सान। अब दूसरा सवाल ठाकुर जी का, कि अगर ये नुक़सान हैं तो फिर मेरे ननिहाल गुजरात में एक भी शराब की दुकान नहीं है लेकिन राजस्थान में आते ही हर दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर अंग्रेज़ी शराब/देशी शराब की दुकान नज़र आती है और उन पर लोगों की भीड़ दिखाई पड़ती है ? यहाँ तक कि कोरोना के वक़्त लॉकडाऊन में भी शराब की दुकानों पर भारी भीड़ दिखाई दी थी ?


ज़वाब में मैंने ठाकुर जी से कहा, क्या मुझे कभी शराब पीते देखा है ? चाय पीते देखा है ? सुपारी या गुटखा खाते देखा है ? ठाकुर जी जवाब में, नहीं पापा जी। तो फिर ये मान लो कि ये सब फ़िलहाल के लिए बहुत बुरी चीजें हैं। मैं आपके बहुत सारे सवालों के ज़वाब आपके अठारह वर्ष पूरे होने पर दूँगा। आपका हर एक सवाल मुझ पर ऋण है, ठाकुर जी।


ठाकुर जी, आप ऐसे तमाम सवालों के ज़वाब मुझसे पूछना, ख़ुद से पूछना, गुरु से पूछना या फिर किताबों में ढूँढना। बस, दुनिया से मत पूछना। क्योंकि दुनिया सारे सवालों के ज़वाब हेरफ़ेर (manipulate) करके देगी। क्योंकि दुनिया दो भागों में बटी है पहले वाले भाग के लोग आपको आसानी से नहीं मिलेंगे और मिल भी जायेंगे तो अहंकारवश कुछ नहीं बताएंगे। और दूसरे भाग वाले लोग आपको सहजता से मिलेंगे, मिलकर पथभ्रष्ट कर देने की पूरी संभावना बनी रहेगी। और किसी पर यक़ीन करना भी हो तो क़िताबों और अपने गुरुओं पर करना, वे आपको हमेशा आईना दिखायेंगे। क़िताबों में दुनिया के तमाम बेहतरीन लोग छपते हैं। पाठ्यक्रम की क़िताबों के बाद मैं आपके हाथ में वित्तीय आज़ादी हासिल किए जाने की क़िताबें देखना चाहूँगा।


मिल्खा सिंह पर बनी फ़िल्म कुछ और सवाल छोड़ती है। फ़िल्म में मिल्खा सिंह एक विदेशी लड़की के प्रेम में पड़ जाते है, प्रेम में पड़ने के बाद उनकी दौड़ का प्रदर्शन प्रभावित होता है वे लक्ष्य से भटक जाते हैं। लेकिन ख़ुद को संभालते हुए वापिस लक्ष्य प्राप्ति की तरफ़ अग्रसर हो जाते हैं। वैसे अकस्मात मिलने वाली चीज़ें मन को लुभाती है, साथ ही वे चीज़ें भटकाव भी लाती है। मिल्खा सिंह के प्रेमवश भटकाव के बारे में भी ठाकुर जी ने सवाल किए। मैंने ज़वाब में कहा हमारे लक्ष्य के बीच जो भी आता है वो हमारा दुश्मन होता है। इसका मतलब ये नहीं कि जीवन में प्रेम ना हो। जीवन का अर्थ ही प्रेम है।


भाग मिल्खा भाग अच्छी फ़िल्म है। मिल्खा सिंह का संघर्ष आदमी में जोश और जुनून भरता है।


~ मनीष शर्मा