कद इथ डोले, कद उथ भागे, बावरा मनवा मोरा, मोरी इक ना माने मन, मन के आगे, अब मैं हारा !!!
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Thursday 27 August 2020
बुरे लोग एक सबक की तरह होते हैं।
Friday 21 August 2020
पृष्ठ संख्या सत्रह।
Sunday 16 August 2020
दिल की आख़िरी मंज़िल प्यार और पैसा हो।
Monday 15 June 2020
सुशांत सिंह राजपूत हमेशा याद रहेंगे।
आत्महत्या करना ग़लत है, बहुत ग़लत। किसी के आत्महत्या किये जाने के बाद हम ये बात कितनी सरलता से कह देते हैं। ऐसा नहीं हैं कि मेरे इस आलेख में, मैं आत्महत्या करने वालों का समर्थन कर रहा हूँ। मैं आत्महत्या जैसे कृत्य की निंदा करता हूँ। लेकिन हमें आत्मीयता रखते हुए हर व्यक्ति के साथ शालीनता और अपनत्व का व्यवहार करना चाहिए। जिससे आत्महत्यायें सरीक़ी घटनाओं पर अंकुश लग सके।
आज तक ना जाने कितने लोगों ने आत्महत्यायें की होगी। लेकिन ना हमने कभी आत्महत्या करने वाले की मनोस्थिति जानने का प्रयास किया। ना ही आत्महत्या करने के पीछे के कारणों को जानने की ज़हमत उठायी। यहाँ तक कि भविष्य में कभी कोई आत्महत्या ना करे इस तरह के एहतियातन क़दम भी नहीं उठाये। उठाते भी तो कैसे हम परिणामों के बाद जागते हैं। परिणाम से पहले हमें सब कुछ सामान्य नज़र आता है। क्या आत्महत्या एक ही पल में लिए जाने वाला फ़ैसला है ? शायद नहीं ! बहुत टूटकर बिखरता होगा वो इंसान, जो आत्महत्या करता है। हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा। रोशनी की कोई किरण कहीं से भी नज़र नहीं आती दिखाई पड़ती होगी।
आत्महत्या करने के तरीक़े अलग अलग हो सकते हैं। लेकिन कारण एक ही है मानसिक तनाव। ऐसा तनाव जिसमें व्यक्ति को लगता है कि अब इस दुनिया में उसकी बात सुनने, समझने वाला कोई नहीं बचा। वैसे भी इस भागदौड़ भरी दुनिया में किसे फ़ुरसत है किसी की बात सुनने की। हर कोई एक ऐसी दौड़ में दौड़ रहा है जिसकी मंज़िल कहाँ है, कोई नहीं जानता।
ज़्यादातर मामलों में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का कमज़ोर होना भी आत्महत्या का कारण बनती हैं। आत्महत्या को बढ़ावा देने में दकियानूसी समाज भी ज़िम्मेदार हैं। समाज की रिवायतें, हमेशा इंसान की सरलता पर हावी रही हैं। क़दम- क़दम पर बेड़ियाँ बाँधता है समाज। अगर कोई इन बंधनों को तोड़ने के प्रयास करता है तो उसे हज़ारों तोहमतें लगाकर ज़लील किया जाता हैं।
हमारे जीने के सारे अधिकार, हमारे पास नहीं, समाज के पास सुरक्षित हैं।
यहाँ मुझे, मेरा लिखा एक शेर याद आ रहा है। "जीवन सरलता का मज़मा है, इसे जटिलता से मत जियो।"
वैसे आज के दौर में किस पर यक़ीन किया जाये, किस पर नहीं। ये भी एक बहुत बड़ी समस्या हैं। क्योंकि जो हमराज़ होते है, वे ही किसी अलगाव के बाद हमारे सारे राज़ से पर्दाफ़ाश करते हैं।
सुशांत सिंह राजपूत द्वारा की गई आत्महत्या इस बात को और पुख़्ता करती है कि बाहर से खुशमिज़ाज इंसान, भीतर से कितना मायूस, दुःखी हो सकता है। इस घटना के बाद प्रतीत होता है कि ग्लैमर की दुनिया कितनी खोखली है, जिसे देखकर लगता है कि सभी झूठी मुस्कानें लिए जी रहे हैं। ग्लैमर की दुनिया वाले ज़्यादातर लोग दोहरा चरित्र जीते हैं और दोहरा चरित्र एक नया एक दिन व्यक्ति को अवसादग्रस्त बना देता है।
उम्मीद करता हूँ कि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगे। सभी का व्यवहार, सभी के प्रति सरल और सहज हो क्योंकि हम कौन से सदियाँ जीने आये हैं। जो एक दूजे से जलते हैं। हाड़ माँस के पुतले हैं, एक दिन मिट्टी में मिल जाना तय है, फिर भी जिसे देखो सीने में एक कुफ़्र (आग) लिए घूम रहा है।
एक अच्छे, सरल व्यक्तित्व वाले कलाकार को आज हमने खो दिया। जिसने बहुत कम उम्र में अपनी मेहनत के बूते एक अच्छा मुक़ाम हासिल किया। भगवान आपकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। आप हमेशा याद रहेंगे। #SushantSinghRajput
~ मनीष शर्मा
Monday 11 May 2020
मानव जीवन बनाम अर्थव्यवस्था
कोरोना से लड़ाई बहुत लंबी चलेगी। अब हमें हमारी समझदारी ही बचा सकती है।