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Sunday 17 March 2013

मेरी जिंदगी मेरे नियम


मैं मेरी जिंदगी मेरे मुताबिख जीना चाहता हूँ, और ये भी ख्याल रखना चाहता हूँ कि मेरी वजह से किसी कि भावनाऐं आहत ना हो, पर शायद ये मुमकिन नहीं क्यों कि आग और पानी भला एक दूसरे के मित्र कैसे बन सकते हैं, मुझ पर पाश्चात्य संस्कृति की गहरी छाप हैं पर शायद ये मेरी संस्कृति वाले लोगों को बरदाश्त नहीं, इन्हें शायद पाश्चात्य संस्कृति में अश्लीलता नज़र आती हैं पर मेरी नज़र में अश्लीलता देखने वाले की नज़रो में होती हैं ना कि संस्कृति में। पाश्चात्य संस्कृति वाले लोग कम से कम जैसे हैं वैसे दिखाई तो देते हैं हम लोग दोहरी जिंदगी जीते हैं, मन में तो अश्लीलता भरे हुए हैं और चेहरे पर सात्विक नकाब लगाऐ घूम रहे हैं, मैं जानता हूँ मेरे इन लव्जों की वज़ह से मेरी छवि उन लोगों में बहुत खराब हो जाएगी जो मेरी बात से सरोकार नहीं रखते पर जैसा कि मैंने कहा ‘‘मैं मेरी जिंदगी मेरे मुताबिख जीना चाहता हूँ‘‘ तो क्यों ना मैं  जीने का प्रयास बड़ी शिद्दत से करूँ.........