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Thursday 4 October 2012

प्रेम का आइना



तुम क़रीब होती हो, तो तुमको दूर पाता हूँ

जब तुम दूर होती हो, तो तुमको करीब पाता हूँ

दिन भर भटकता हूँ, रातों को जागता हूँ

अक्सर तन्हाई में खुद से, बातें किया करता हूँ

कुछ सोचता हूँ, पर बयाँ नहीं कर पाता

कुछ चाहता हूँ पर जता नहीं पाता

अजीब सी उलझन हैं, अज़ीब सी तड़पन

अजीब सी बेचैनी हैं, और अजीब सी सिहरन

तुमको पाने का, जश्न हैं दिल में

एक त्यौंहार सा, हर पल हैं मन में

शायद तुम कभी, समझ ना पाओ

ये हाल ए दिल मेरा

शायद तुम कभी, जान ना पाओ

ये जूनूँ ए जज्बा मेरा

कितनी शिद्दत से, मोहब्बत हैं मुझे तुमसे

बड़ी मुद्दतों से, तुम्हें पाने की हसरत थी मुझे

कहने को बहुत कुछ हैं, इस दिल में

जो बरसों से, सम्भाल कर के रखा हैं

लव्ज़ मिले, तो माला बना कर पिरो दिया शब्दों को

क्यों कि तुमने ही तो, संवारा हैं मेरे जीवन को

बिन पंख उड़ रहे थे, इस जहाँ में

तुम्हीं तो पंख दिये हो

बिन प्रवाह बह रहे थे, इस नदी में

तुम्हीं तो प्रवाह दिये हो

तुम्हारा ख्याल, तुम्हारी परवाह

अब हैं दिन रात मुझे

तुम्हारी इबादत, तुम्हारा सजदा

अब तुम बिन कुछ ना सूझे मुझे

अब तुम बिन कुछ ना सूझे मुझे........
                                                                    

 

                                 

                                                                 Image courtesy  :  M F Hussain