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Sunday 12 October 2014

जन्नत सिसक रहा है !!!

बाढ़ग्रस्त हैं गलियां सारी

विकट परिस्थितियाँ हुई हैं भारी

चीत्कार रहे हैं सारे कूचे

नम निगाहें इधर उधर

बस अपनों को ही ढूंढें

ग़म भारी है और दर्द हावी

हर ओर फैली भयावह त्रासदी

डल तबाह हो चुकी है

शिकरे सभी हुए तहस नहस

कोई तो देखो, कोई तो थामों

नम निगाहें मदद मांगे

उदास चेहरे भीतर झांके

कश्मीर (जन्नत) सिसक रहा है

अपने ज़ख्मों पर फफक रहा है

कश्मीर (जन्नत) सिसक रहा है

अपने ज़ख्मों पर फफक रहा है !!!

Poet : Manish Sharma

Sunday 3 August 2014

दोस्त हो कोई...

यहाँ दोस्त तो
सभी है हमारे
दिल के क़रीब भी
होता कोई

लभों से कुछ ना
कहते उसे
नैनों की भाषा
समझता कोई

कुछ अपनी कहते
कुछ उसकी सुनते
बातें बेवजह यूँ ही
होती कोई

ख़ुशी में हँसते
ग़म में ग़मगीन होते
ऐसा कभी कहीं
अपना भी होता कोई

राज जो सीने में
दबे है हज़ारों
इन्हें जान पाता ऐसा
राजदार होता कोई

अब तक नहीं मिला
सच्चा दोस्त कोई
एक दिन जरूर मिलेगा
सच्चा प्यारा दोस्त कोई

Happy Friendship Day !!

Manish Sharma