आज हिन्दी दिवस के अवसर पर हमारे शहर बाड़मेर में एक काव्य संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें मुझे भी शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ, बहुत ही मंझे हुए कवि और साहित्यकार थे इस संगोष्ठी में। एक श्रोता बनकर तो मैंने कवियों से कविताऐं कई बार सुनी पर एक कवि का कविता कहने का अहसास क्या होता है वो मैंने आज पहली बार महसूस किया।
कविता पठन से पहले की शिथिलता और मन में उत्पात एक विचित्र सी स्थिति होती है हालाँ कि मैं इससे पहले कई बार किसी ना किसी प्रकार के विषयों पर अभिव्यक्ति देने के लिए मंच पर जा चुका था लेकिन ये सत्य हैं कि हर एक जगह का अपना एक अलग ही दबाव होता हैं और यहाँ में खुद को कुछ ऐसे ही दबाव के तले दबा महसूस कर रहा था।
सभी लोगो का ध्यान भी मुझ पर केन्द्रित हो गया था और मेरी दशा बिल्कुल वैसी थी जैसा कि एक नए प्रेमी की होती हैं जो अपनी प्रेमिका को प्रेम का इज़हार करने से पहले अपने मन को ना जाने कितनी बार समझाता होगा पर “मन” मन भला कहाँ समझ पाता है, संगोष्ठी के आरम्भ से लेकर अन्त तक कविताओं के रस से माहौल सराबोर रहा।
एक अच्छे अनुभव के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ जिसमें सभी कवियों को पुरस्कृत कर सम्मानित किया गया। शुक्रिया अदा करता हूँ मैं उस रब का और उन लोगों का जिन्होनें मुझे मंजि़ल की और अग्रसर होने का फलसफ़ा सिखाया।