मैं वो नहीं बनना चाहती, जो तुम हो
मैं वो नहीं होना चाहती, जो तुम हो
मैं तुम हो गयी तो मैं, मैं नहीं रहूंगी
मैं थम गयी, तो फिर कभी नहीं बहूँगी
मेरा वजूद तुम नहीं हो
मेरी पहचान तुम नहीं हो
मेरे जीने की वज़ह तुम नहीं हो
मेरे हँसने का सबब तुम नहीं हो
मेरे अल्फाज़ तुम नहीं हो
मेरी परवाज़ भी तुम नहीं हो
तुमने मुझे क्या समझा
भोग विलास का साधन
तुमसे मुझे क्या हासिल
ग़म, दर्द, यातना
मैं सदियों से सहती आ रही हूँ
क्या अब भी सहूँ
मैं बरसों से खमोश रही हूँ
क्या अब भी चुप रहूँ....?
मैं वो नहीं होना चाहती, जो तुम हो
मैं तुम हो गयी तो मैं, मैं नहीं रहूंगी
मैं थम गयी, तो फिर कभी नहीं बहूँगी
मेरा वजूद तुम नहीं हो
मेरी पहचान तुम नहीं हो
मेरे जीने की वज़ह तुम नहीं हो
मेरे हँसने का सबब तुम नहीं हो
मेरे अल्फाज़ तुम नहीं हो
मेरी परवाज़ भी तुम नहीं हो
तुमने मुझे क्या समझा
भोग विलास का साधन
तुमसे मुझे क्या हासिल
ग़म, दर्द, यातना
मैं सदियों से सहती आ रही हूँ
क्या अब भी सहूँ
मैं बरसों से खमोश रही हूँ
क्या अब भी चुप रहूँ....?